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चार पीढ़ीयो की प्रेम कथा

लेखिका: रेखा रौतेला 

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हम आपस में अक्सर मज़ाक में कहा करते हैं कि हमारे यहां दो तरह की शादियां होती हैं। एक तो ‘सटका’ शादी – जहां दो प्रेमी चुप चाप सटक या भाग जाओ, और दूसरी ‘झटका’ शादी जहां मां बाप ने तय किया और आप चुपचाप शादी कर लो।

मैंने अपने पसंद का अपना जीवन साथी चुना और मेरी मन पसंद की शादी हुई। आज भी मुझे और मेरे साथी को लगता है जैसे कल ही की बात हो – एहसास नहीं होता कि हमारी शादी को 24 साल हो गया हैं। हमारे समय में मोबाइल फोन नहीं थे, पत्र व ग्रीटिंग कार्ड एक दुसरे को भेजे जाते थे और उसी के जरिये हमारी एक दुसरे से बात हुआ करती थी। उस समय गांव में बॉय फ्रेंड या गर्ल फ्रेंड कहना तो बहुत ही डरावनी बात होती थी, जैसे पता नहीं क्या गुनाह कर दिया हो। हमारी शादी बीच की शादी थी जहां पसन्द अपनी थी और हमारे परिवार वाले बाद में मान गये। शायद हमारे लिये उतनी चुनौती नहीं थी क्योंकि हम एक ही समाज के थे।

Radiant in her wedding finery, 24 years ago, the writer chose to marry for love. Courtesy: Rekha Rautela

भाग जाने की तब नौबत आती है जब खासकर लड़की-लड़का अलग समाज या जाति से हों। हमारे गांव में 80% भोटिया समाज (अनुसुचित जनजाति) के लोग हैं हलांकि गोरी घाटी, जहां सरमोली गांव स्थित है, में उनकी जनसंख्या 20% से कम है और लगभग उतने ही अनुसूचित जाति के लोग हैं। बाकी की जनसंख्या सामान्य या ‘जनरल कास्ट’ के लोग हैं। जहां लड़का लड़की के अलग जाति होने के कारण उन्हें घर वालों ने स्वीकारा नहीं, ऐसी स्थिति में उन्हें घर छोड़ कर भी जाना पड़ा है। आज से दो दषक पहले हमारे गांव में किसी जरनल (समान्य जाति) व एस टी (अनुसुचित जाति) के लोगों के बीच शादी नहीं हुआ करती थी। हमारे गांव से जब किसी ने पसंद कर लिया तो उन्हें भाग कर ही शादी करनी पड़ती थी। और एक केस में घर वालों के दबाव में दोनों भागे प्रेमियों को ज़बरन अलग हो जाना पड़ा। ब्राहमण समाज में भी अपने जाति से बाहर शादी की तो परिवार वालों द्वारा उनका जीतेजी क्रिया संकार भी कर दिया जाता था। आज भी जातिप्रथा का काफी दबाव है। जहां भागने के बाद परिवार नये दम्पति को स्वीकार करने को राजी हो जाते है, वहां तो दोनों का आंचल (छोटी शादी) कर दी जाती है। शादी में तो दुल्हा बाजा गाजा लेकर दुल्हन के घर जाता है। आंचल में लड़के के घर में ही लड़की के परिवार वाले जाते हैं और सिर्फ फ़ेरे करवा देतें हैं। हमारे क्षेत्र मेें आज कल भोटिया (अनुसुचित जनजाति), ठाकुर व ब्राहमण के बीच मन पसंद की शादी कर लेते है। कुछ दिनों तक तो परिवार में तनाव का माहौल बना रहता है। धीरे धीरे लोग भूल जाते है। हमारे गांव समाज में अभी भी दिमागी सोच में बदलाव की आवश्यकता है।

A beautiful, bright morning in the Gori Ganga Valley, with the snowy peaks of the Panchachuli range veiled in clouds. Photo: Rekha Rautela

मेरी मां अपने ज़माने के बारे बताती है कि उनके पिता जी, यानि हमारे नानाजी दिखने में बहुत सख़्त इंसान थे। बेटियों को प्यार तो देते थे पर हमेशा उनकी सुरक्षा की चिन्ता लगी रहती थी। इसलिये पाबन्दियां बहुत थी और अपने मन पसंद का लड़का चुनना तो असंभव सी बात थी। मेरी मां तेरह साल की थी जब उनकी शादी हुई। वो कहती हैं कि आजकल ही हो रहा है ये “प्यार प्यार, फिर मारते है बाद में डार (चिल्लाना)। ” उस समय तो शादी हो के भी एक दो महिने तक शरम के मारे आपस में बोलते ही नहीं थे। प्रेम को लेकर उनका कहना है कि एक दुसरे का ख़याल रखना ही तो प्यार है। प्यार शादी से पहले ही हो यह उनको जरुरी नहीं लगता। शादी के बाद भी एक दुसरे से प्यार हो सकता है। उनके समय में मन पसंद साथी चुनना तो खतरनाक बात थी। कुछ ही लोग जो भाग कर शादी करते थे तो लोग उन्हें सालों साल कोसते रहते थे।

The writer’s paternal grandparents practically grew up together, married when the bride was barely seven. Courtesy: Rekha Rautela

मैंने अपने गांव की उम्रदार महिलायों को पूछा जैसे कि- पहले के समय में कैसे बिना देखे लड़का लड़की एक दुसरे से शादी कर लेते थे? और कौन तय करता था? क्या शादी होने के बाद भी लड़का लड़की आपस मे मिलकर एक दुसरे के पसंद नापसंद की बात कर सकते थे कि नही? तो जवाब में मिला- अपने पसन्द का लड़का लड़की चुनना तो उस समय में बहुत मुश्किल था। जैसा मां बाप ने तय किया वही मानना होता था। मेरी दादी अक्सर हमें कहती थी कि आज कल तो इतने बड़े होने तक शादी नहीं करते- तुम्हारी उम्र तक तो हमारे बच्चे हो गये थे। और बोलती थीं- “मेरी  शादी तो सात साल में ही हो गयी थी। शादी के दिन जब विदाई हुई तो मुझे मेरे भाई ने और गांव के लोगों ने बारी बारी पीठ में रख कर ससुराल तक लाये। मेरी ज्यु (सासु )ने मेरी बहुत हिफाजत किया। कुछ साल तक अपने साथ रखा, घर के काम सिखाया, साथ में तुम्हारे बुबू (दादा) ने भी खूब सम्मान दिया और अच्छा मानते थे। जहां भी जाते थे मेरे लिये कुछ न कुछ तोफ़े आते थे। फिर क्या था -जब  तक होश सम्भाला, जब लगा कि मै बड़ी हो गयी  हूँ, तो पहला बच्चा मेरे गोद में था।”

मैंने अपने दादा दादी के बीच का प्रेम देखा। वो हमेशा एक दुसरे का बहुत ख्याल रखते थे। दादी बताती थी कि उस समय लड़के को लड़की पसंद आ गयी तो पटाने के अपने तरिका था- जब मिलो तो गोला (नारियल) मिश्री खिलाओ। कोई चिठ्ठी पत्री नहीं होती थी। संदेश पहुचाने का तरीका अपने खास दोस्तों के जरिये ही किया जाता था।

Parents of the writer, who believe the essence of love is taking care of each other. Courtesy: Rekha Rautela

मिल पाने के मौका बस गांव के मेलों में था। कुमांऊ बहुत से मेले लगते है जिसमें से हमारे गोरी धाटी में शिवरात्री के पूजा में प्रेमी जोड़े के लिये भाग जाने का एक सुनहरा अवसर होता था। शिवरात्री का मेला मदकोट में लगता है और आज भी वही से लड़की-लड़की एक दूसरे को भागा कर शादी करने का चलन बना हुआ है। फिर बाद में ‘आचंल’ कर शादी हो जाती है।

Mesar Van Kautik is celebrated each summer in Sarmoli, an opportune time to find love. Photo: Trilok Singh Rana

हमारे यहां नंदा देवी, दुर्गा मय्या, उल्का माता, वन कौतिक आदि के मेले पास के गांव सुरिंग, डानाधार, दराती व  62km  दूर जोहार घाटी के उच्च हिमालयी गांव मिलम, पाछू व अन्य गांव में लगते हैं। साल में अगस्त माह में सर्व प्रथम यहां मेसर देवता की पूजा होती है और मेसर देवता की भी प्रेम कहानी है। उसके तुरंत बाद में नंदा देवी का चार रातों का जागरण लगता है और पांचवे दिन बड़े धूम धाम से मेले का आयोजन किया जाता है। इन मेलो में सामुहिक चांचरी गाते हुए लोग मन्दिर तक जाते है। पूजा अर्चना के बाद सामुहिक पारम्परिक नृत्य के साथ ‘डुस्का’ गाया जाता है। ऐसे मौकों पर प्रेमियों को भीड़ में एक दूसरे को चोरी छिपे मिलने का बहाना मिल जाता है।

Women dressed up in their traditional attire for the mela. Photo: Trilok Singh Rana

समय के साथ साथ बहुत बदलाव हो रहे है। आजकल लोग फ़ेसबुक पर मिलकर, फिर शादि कर ले रहें है। आज हमारे गांव में कुछ लोग है जिन्होंने मन पसंद से एक दुसरे को चुना और अपना परिवार बनाया, लेकिन शादी नहीं की। यानि कि अपनी सूजबूझ से कोई रस्म रिवाज या अपने रिश्ते पर कोई समाजिक ठप्पा नहीं लगाया है। आज की पीढियों में तो मन पसंद के रिश्ते बनाना और बॉय फ्रेंड-गर्ल फ्रेंड बनाना तो आम बात हो गयी है। फिर बोलते है ‘ब्रेकप’ हो गया और उसका भी मलाल प्रतीत नहीं होता है।

हमारे गांव के ही कुछ नव युवतियों का मानना है कि बिना सोचे समझे मन पंसद की  शादी कर लेना बहुत मुर्खता होगी। पहले तो हम अकेले है और अपने मां पिता के साथ घर में है खुद की जिम्मेदारी पूरा कर सकते है। इस बेरोजगारी के दौर में शादी कर ली- कल के दिन परिवार बना लिया, बच्चे हो गये, पर्वरिश ठीक से न कर पाये तो डबल दु:ख झेलना पड़ेगा। शादी नहीं की तो एक ही तो दु:ख होगा। कुछ नव युवतियों का कहना है- “हमें पढा़ई करके अपने पैरों पर खड़े हो जाना होगा, फिर तो क्या है- रिश्ते तो पीछे दौड़ते हुए आयेंगे। कल के दिन अलग भी हो गये तो किसी के मोहताज नही रहेंगे।”

मरी बेटियों व उनके साथ के लड़कियों का सोच है कि प्यार तो वो है जो जीवन के हर मोड़ पर एक दुसरे को आगे बढाने में सहायक हो, ताकि जीवन में कोई कठिनाई न हो। बॉलीबुड के फिल्मों ने आज के युवक युवतियों का ब्रेनवॉश कर रहे है- कमाई हो न हो बस प्यार हो। फिर छ: माह-सालभर बाद रोते रहे। फिल्मों की बाते फिल्मी दुनिया के लिये ठीक है। “हमें तो असल जिन्दगी जीनी है। इस लिये आने वाले कठिन दौर में सबसे पहले खुद को सक्षम बना ले ताकि अपना भविष्य में अच्छा परिणाम मिले।”

The Rautela family is a picture of love, at home in each other’s company. Courtesy: Rekha Rautela

हमारे पहाड़ों में कई दूर दराज के गांव है जहां पर कठिन परिस्तियों में लोग रहते है। ऐसे गांव में -जहां पैदल रास्ता, ढेर सारी खेती-बाड़ी व पालतू जानवर है- जब रिश्ता ढूंढा जाता है तो जवाब मिलता है- मेरे रिश्तेदारों की बेटियां तो इस जगह में कभी न पहुंचे। ऐसे जगहों में जिसका ‘काठ का पांव लोहे का सिर’ होगा वही जी पायेगा, यानि कि शादी के बाद बहुत कड़ी मेहनत करनी होगी।  

चार पीढियों की ‘प्रेम’ को अलग अलग सोच व अनुभव रहे हैं। अपनी दादी से सुनी हुई बातें- जो उन्होंने हमें बतायी थी, मेरी मां, मैं खुद और मेरे मित्र व बेटियों से जो बाते निकल कर आयी, उससे मेरे मन में यह खयाल उठता है कि चाहे पुराने ज़माने की बात करें या आज के इस भाग दौड़ के यग की- आपसी प्रेम ही है जो हमें एक दुसरे को जोड़े रखता है।

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*Cover image: Jamez Picard (Unsplash)

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Rekha Rautela
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Rekha Rautela has been running her homestay in Sarmoli since 2004 and is also a sought after bird guide in Uttarakhand. She is presently an elected panch of her village Van Panchayat (a member of the Forest Council). Down to earth with a keen wit and intellect, Rekha stands tall and holds her own in society at large. She is a leading member of the women’s collective Maati and has emerged as a strong and respected voice in the valley. Born into a farming family and helping with the agricultural chores, it is only now after having raised her 4 kids that she herself has become a keen farmer.

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Himalayan Ark is mountain community owned and run tourism enterprise based in Munsiari, Uttarakhand. They enable and guide deep dives into rural lives and cultures, as well as in natural history and high mountain conservation initiatives and adventures.

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