• मेसर कुण्ड की कहानी

    लेखिका: पुष्पा सुमत्याल Read the translated story in English मेरा बचपन घोड़पट्टा गाँव में बीता जो बर्निया गाँव से लगा हुआ है और जहाँ मेसर देवता को पूजने वाले बर्पटिया समुदाय के लोग रहते हैं। घोड़पट्टा में बड़े सीढ़ीनुमा खेत और बड़े आँगन वाले घर हैं। दोस्तों के साथ मिलके खोखो और सातपत्ती खेलना मेरी इस गाँव से जुडी सबसे अच्छी यादें हैं। गाँव की उमरदार महिलाएं मुझे उनके कालीनों के लिए नए डिज़ाइन खोजने के लिये भेजा करती थीं। फिर शाम को हम सब गाँव के चबूतरे पर इकट्ठे होकर दिन की कहानियाँ सांझा करते थे।  शादी के बाद मैं मेरे पति के साथ सरमोली आकर बस गयी।मेसर कुंड सरमोली…

  • हिमालय की एक महान सन्त

    लेखक: छेरिंग नोंरबु Read the translated story in English मेंरा नाम छेरिंग नोंरबु है।  मैं गाँव- डैमुल, ज़िला- लाहौल स्पिति, (हि० प्र०) के निवासी हुँ। प्राचीन काल से ही हिमालय क्षेत्र के गुफ़ाओं में अलग अलग धर्मों के बहुत सारें योगियों ने कठोर तप करके सिद्धि प्राप्त करते आ रहा है उन्हीं गुफ़ाओं में से एक स्पिति के डैमुल नामक गाँव से १.५ कि०मी० दुर ठीक उतर दिशा में बहुत ही पुराना व एेतिहासिक खपसा नामक गुफ़ा है जहां के पत्थरों में बहुत सारे पवित्र चिन्ह है जिसे देखने व दर्शन के लिए दुर दराज़ से श्रद्धालु आते है। इस गुफ़ा में हज़ारों वर्षों से गांव एवं अन्य क्षेत्र की बहुत…

  • हिमाचली उत्सव जिसमें हिरन हर घर के दरवाज़े पर नाचती है

    लेखिका: कनिका मेहता Read this story in English हरन हमारे यहाँ के त्यौहारों में से एक ख़ास त्यौहार है जिसमें हम हरन निकालते हैं। यह हरन पूरे कुल्लू ज़िले में निकाली जाती है। इसे कुल्लू दशहरे के समय निकाला जाता है। यह त्यौहार विशेषकर बच्चोंको अच्छा लगता है इसलिए वे इसके आने के लिए उत्सुक होते हैं। क्योंकि हमारे यहाँ हरन दशहरे के समय निकाली जाती है, इस समय बच्चों को भी ७ दिन की छुट्टी होती है। इन छुट्टियों को बच्चे बड़े मज़े से गुज़ारते हैं। इसके आने का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। क्योंकि सभी बच्चे कुल्लू दशहरे में नहीं जाते हैं, वे दशहरे से ज़्यादा हरन में…

  • हिमाचली घर की झलक

    लेखिका: दिव्या भियार Read this story in English आज मैं आपको अपने घर के बारे में बताना चाहती हूँ। मेरा घर लकड़ी का बना हुआ है जो चार मंज़िला है। घर के सबसे ऊपरी मंज़िल में रसोई होती है। दूसरी मंज़िल को बिह और कुछ लोग ज़िली बाहुड़ कहते हैं। तीसरी मंज़िल को फढ़ कहा जाता है तथा चौथी मंज़िल को खुड़ कहा जाता है जहाँ गाएँ रखी जाती हैं। रसोई – घर के सबसे ऊपरी मंज़िल पे रसोई होती है। मेरे घर में रसोई में एक तंदूर लगा है जहाँ हम खाना बनाते हैं। तंदूर जलने के लिए लकड़ी घर में रखी होती है। घर में गैस भी है…

  • चार पीढ़ीयो की प्रेम कथा

    लेखिका: रेखा रौतेला  Read this story in English हम आपस में अक्सर मज़ाक में कहा करते हैं कि हमारे यहां दो तरह की शादियां होती हैं। एक तो ‘सटका’ शादी – जहां दो प्रेमी चुप चाप सटक या भाग जाओ, और दूसरी ‘झटका’ शादी जहां मां बाप ने तय किया और आप चुपचाप शादी कर लो। मैंने अपने पसंद का अपना जीवन साथी चुना और मेरी मन पसंद की शादी हुई। आज भी मुझे और मेरे साथी को लगता है जैसे कल ही की बात हो – एहसास नहीं होता कि हमारी शादी को 24 साल हो गया हैं। हमारे समय में मोबाइल फोन नहीं थे, पत्र व ग्रीटिंग कार्ड…

  • एक नदी का उत्थान और पतन

    tirthan river

    लेखक: परस राम भारती     Read this story in English तीर्थन नदी से मेरी कई निजी यादें जुड़ी हुई हैं। मेरा घर नदी से करीब 100 गज की दूरी पर ही है। बचपन से ही मैंने इस नदी में खेलना, कूदना, तैरना और मछली पकड़ना सीखा है। अपने जीवन काल में देश व प्रदेश की बहुत नदियां देखी लेकिन इस नदी का शीशे की तरह साफ पानी और यहाँ पर पाई जाने वाली ट्राउट मछली की वजह से यह अपनी विशेष पहचान रखती है। वर्ष 2015 के बाद से तो भरपूर पर्यटन सीज़न के दौरान सैलानीयों को तीर्थन नदी में फिशिंग, पिकनिक, नदी भ्रमण और रिवर क्रॉसिंग करवाना तो लगभग रोज…

  • स्पिति के लोग आज भी पत्थर खाते हैं

    लेखक: छेरिंग नोंरबु Read this story in English मेरा नाम छेरिंग नोंरबु है।  मैं ग्राम डैमुल, ज़िला – लाहौल स्पिति, हिमाचल प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक अमची (अमची का मतलब है “सभी जीवों की माँ”) हूँ। मेरा परिवार सैकड़ों वर्षों से वंशानुगत सोवा रिग्पा (उपचारात्मक प्राचीन विज्ञान) पद्धति से उपचार व प्रचार करते आ रहा है ओर इसे संरक्षित कर रहा है। इस पद्धति के पूरे कोर्स अगर आप किसी संस्थान में करते है तो ५ वर्ष लगते हैं। परन्तु मैं बचपन से ही अपने दादा जी एवं पिता जी से भोटी भाषा लिपि के पश्चात सोवा रिग्पा के ज्ञुत झी- चार बुनियादी चिकित्सा ग्रन्थ (Secret Oral Tradition Of The Eight Branches Of The…

  • माटी के रंग – हिमालयी जड़ी बूटियों व पेड़ों से ऊन की रंगाई

    लेखिकाः बीना नित्वाल Read this story in English मेरा जन्म भोटिया परिवार में बागेश्वर जिले में हुआ। भोटिया समुदाय ऊनी कारोबार, भेड़ पालन के लिये प्रसिद्ध थे और कहा जाता था कि पूरे कुमांउ के ऊनी वस्त्र यहीं से जाते थे। मैंने बचपन में ज़्यादा खेती करना सीखा था क्योंकि हमारे पास काफी खेत थे। मैंने अपनी माँ से ऊन की प्राकृतिक रंगाई के बारे में सुना तो था पर शादी के बाद मैं जब मुनस्यारी में सरमोली आई, तभी जाकर खुद रंगाई व बुनाई का काम करने लगी। जब हम लोग रंगों के लिये पेड़ के पत्ती, फल के बखल,  जड़ी बूटी के जड़ को देखते हैं तो इनको…

  • बाघ कथा: पुरुषवाडी

    adult tiger walking on brown grass

    महाराष्ट्र के पुरुषवाडी गाँव के एक शिक्षक ने जंगली बाघों की पूजा करने की पीढ़ी-पुरानी प्रथा साझा की, जो आज भी जारी है