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एक पेड़ से आर्सी तक का सफर

फ़ोटो निबन्ध: त्रिलोक सिंह राणा

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मेरा नाम त्रिलोक राणा है। हमारे घर में चौखट खिड़की पुराने शैली के है जिसमें नक्कशी किया है। मैं सोचता था- ये कैसे बनाये होगें?  हाल में जब हम अपने होम स्टे घरों में पारम्परिक नक्काशी कर दरवाजों खिड़कियों का सुधार कर रहे थे तो मुझे भी सीखने का मौका मिला और मैंने आर्सी की फ्रेम तैयार किया- क्या अच्छा लगा!

मैं एक सामान्य परिवार से हूँ और मेरा परिवार खेती करता था। अब जंगली जानवरों के कारण ज्यादातर खेत बंजर पड़ गये हैं। हमारे यहां कुमाउनी भाषा बोली जाती है और जब गांव में कभी शादी या पार्टी होती थी तो मैं उसमें छबीली (टप यानि कि गीत में अंतरा) गाया करता था जिसमें मुझे मज़ा आता था। आज मैं पहली बार कहानी बताने जा रहा हूँ और यह मेरे लिये एक नये माध्यम से अपने आप को व्यक्त करने का मौका मिला है।

कोविड-19 के चलते लॉकडाउन से आज हमारे यहाँ पर्यटन बन्द है। मेरा घर भी पर्यटन से चलता है क्योंकि मैं एक बर्ड व हाय ऑल्टिट्यूड गाईड का काम करता हूँ। साथ में मुझे फोटोग्राफी में भी रूची है। हमें कुछ करने का मौका मिला तो हमने इस समय का सदुपयोग अपनी क्षमता बढ़ाने में लगाने का तय किया।

मैं इस फोटो निबन्ध के ज़रिये आप को अखरोट के पेड़ से लकड़ी के तख्ते चीरकर, उनपर नक्काशी कर, कैसे हमने आर्सी तैयार किये- इस कहानी को चित्रों में बता रहा हूँ।

पंचाचूली मुनस्यारी की विशेष पहचान है और यह पर्वत श्रंखला साल भर बर्फ से ढका रहता है जिसे देखने के लिए बहुत से पर्यटक मुनस्यारी आते हैं। मुनस्यारी साढ़े छ: हजार फीट की ऊचाई पर स्थित है और नेपाल व तिब्बत बॉडर से लगा है। यह एक तहसील मुख्यालय है व 130 किलोमीटर की दूरी पर ज़िला मुख्यालय पिथौरागढ पड़ता है व राज्य उत्तराखण्ड में आता है। नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है जहाँ से मुनस्यारी की दूरी 300किलो मीटर की है।   

फोटोः Trilok Rana


अखरोट के पेड़ की लकड़ी नक्काशी के लिये बढ़िया मानी जाती है क्योंकि इसकी लकड़ी ठोस है, इसपर बारीक काम किया जा सकता है और सूखने के बाद लकड़ी का रंग गहरा और सुन्दर बन जाता है। इसलिये इमारती लकड़ी में इसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। जो अखरोट के पुराने, मोटे व सीधा पेड़ होता हैं उनसे इमारती लकड़ी चीरकर बनायी जाती है। अब हमारे इलाके में अखरोट के पेड़ों की संख्या कम होती जा रही है। तो लोग इसे कम इस्तेमाल करते है और उसकी जगह सुराई व उत्तीस की लकड़ी मकान बनाते समय इस्तमाल में लाया जाता है। 

फोटो: Trilok Rana


 मुनस्यारी में परम्परागत रूप से अखरोट, ल्वैंठ, सानन व गैंठी के पेड़ों से अनेक सामान बनाकर दैनिक जीवन में प्रयोग किया जाता था जिसमें ठ्यॉक (लकड़ी के बर्तन) शामिल हैं जिनमें लोग अभी भी अपने घरों में दही, मक्खन, नमक, आदि रखते है।

फोटो: Rekha Rautela


मुनस्यारी में दो पीढ़ी पहले तक लोग अखरोट व ल्वैंठ के पुराने पेड़ों में से घरों के दरवाजा व खिड़कियों की चौखट बनाते थे और उन पर गांव के ‘ओर’ जाति के मिस्त्री ही ‘लिखाई’ या नक्काशी किया करते थे, जो अभी भी पुराने घरो में दिखाई देती है।  उच्च हिमालय के मर्तोली गांव का यह एक पुराना पारम्परिक घर है जो अब खण्डर हन गया है जिसके दर्वाज़ों पर लिखाई  अब भी खिली हुई है।  पुराने घरों में नक्काशी के चौखट व खिड़की को जब मैं देखता था तो सोच में पड़ जाता था कि कैसे लोगों ने बड़े-२ लकड़ियों पर नक्काशी किया होगा। उस समय तो बिजली को यन्त्र भी नहीं थे और इतने बड़े चौखटो में कैसे बनाये होगे,  कितना समय लगा होगा?

फोटो: E Theophilus


मेरे गांव  शंखधुरा में पचास साल पुराने घर की खिड़की आज भी है जिसे बनाने वाला कारीगर नहीं रहे व उनके वंश के लोग अब इस काम को आगे नहीं करना चाहते। लिखाई का काम बारीकी का काम है और इसमें समय लगता है। पर आजकल घर बनाने वाले कारीगरी को इस कला की पूरी कीमत देने को राज़ी नहीं रहे।  ऐसे पुराने स्टाइल के चौखट अब नये घरों में नहीं बना रहे हैं और ऐसे कारीगर जो लकड़ी की नक्काशी के काम में गुणी हैं बहुत कम रह गये है।                                              फोटो: Lalita Waldia


हमारे गांव सरमोली में पिछले 16 सालों से गांव के लोग होम स्टे व पर्यटन का काम करते आ रहे हैं। इन घरों में नक्काशी का काम एक-आधे साल से हिमल प्रकृति व Resilient Himalyana Homes (IIT रूड़की) के सहयोग से शिल्प स्टूडियो  स्थापित कर चलाया जा रहा है। हालाकि हमारे घर नये शैली में बनाये गये हैं,  हर होम स्टे घर के दरवाजों व खिड़की के चौखटों पर पारम्परिक शैली में नक्काशी का काम किया जा रहा है।

फोटो: Lalita Waldia


शुरू करते समय नक्काशी का कारीगर की जरूरत पड़ी तो लोकल में कारीगर नहीं मिला। बिहार से मुनस्यारी में आये लकड़ी का काम करने वाला एक मस्त्री जो नक्काशी में माहिर हैं ने हमारे यहाँ के दो कारीगरों को तैयार किया। औरमौका देख कर हम भी लकड़ी पर नक्काशी सीखने में शामिल हो गये।

फोटो: Malika Virdi


हर होम स्टे परिवार ने यहां के पुराने डिज़ाइन को चुना और फिर स्थानीय मिस्त्रियों द्वारा होम स्टे घरों के लिये अखरोट की लकड़ी पर लिखाई कर तैयार किया।

फोटो: Malika Virdi


अखरोट के लकड़ी के पट्टियों पर नक्काशी करने के बाद उसकी रेजमल से सफाई करने से डिज़ाइन और उभर जाते हैं।

फोटो: Trilok Rana


नक्काशी किये गये पट्टियां जब तैयार हो जाती हैे तब उन्हें इस तरह घरों के दरवाजों पर ठोक दिया जाता है। अब हमारे होम स्टे के अधिकतर घरों में नक्काशी की चौखट दिखाई देते हैं।

फोटो: Trilok Rana


कोविड-19 के इस चुनौतिपूर्ण दौर मे पर्यटन से जुड़े मेरे और साथियों के साथ मिलकर मुझे अखरोट की लकड़ी के शीशा फ़्रेम पर नक्काशी करने का मौका मिला जो मेरे जिन्दगी में यादगार रहा। 

फोटो: Rekha Rautela

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लॉकडाउन से आज हमारे यहाँ पर्यटन बन्द है। हमारे गांव सरमोली में होम स्टे से जुड़ी महिलाएें ने भी अपने घरो के लिए शीशा फ्रेम तैयार करना के प्रशिक्षण में शामिल हो गये। इन में से कई ऊनी कारोबार में कलाकार हैं। परन्तु लकड़ी पर नक्काशी का काम वे अपनी जिन्दगी में पहली बार कर रहे थे।

फोटो: Trilok Rana


स्थानीय मिस्त्री से हमने प्रशिक्षण लेकर और उनके सहयोग से हमारे साथियों ने पुराने डिजायनों के चाय ट्रे व पेपर होल्डर बड़े चावसे तैयार किये।

फोटो: Trilok Rana


मोर पीठक पुशतैनी रूप से शुभ कार्यो में चन्दन, पीठाक,अक्षत (चावल)  रखने का बर्तन है। लेकिन अब इनकी जगह स्टील की थाली ने ले लिया और यह बहुत कम लोगों के घरो में मात्र शो पीस की तरह रह गया हैं। इस धरोहर को जीवित रखने के लिए हमारे होम स्टे की मालकिन अपने घर के लिए मोर पिठाक बनाने को ठान लिया। उम्मीद है कि फिर से इसका शुभ मौकों पर इस्तमाल करना स्थापित हो जायेगा।

फोटो: Trilok Rana


लॉकडाउन के कारण स्कूल की छुट्टीयों का सदुपयोग करते हुए हमारे गांव की लड़कियां भी हमारे साथ नक्काशी के काम को सीखने में शामिल हो गयी।

फोटो: Trilok Rana


होम स्टे की महिलाओं द्वारा पुराने डिजायनों को अपने हाथों से नक्काशी कर शीशा फ्रेम तैयार किया गया।

फोटो: Malika Virdi


मुझे अपने लिए शीशा फ्रेम तैयार करने में लगभग 10 दिन लगे। जब मैं इसे अपने घर ले गया तो मरी पत्नी इन्दू खुशी से अपने सब सहेलियों को दिखाया। लोग इसे हाथो-हाथ मेरे से खरीदना चाते थे। पर यह मेेरे मेहनत से बनाया गया पहला नक्काशी का काम था। आज ये मेरे घर में सजा हुआ है।

फोटो: Rekha Rautela


लिखाई के प्रशिक्षण के दौरान बनाये गये तैयार शीशा फ्रेम के साथ जब हम खड़े हुए तो हमारे गांव के लोग अचम्भित हो गये। अब हमारे स्थानीय मिस्त्री  इलाके के पुराने डिजायनों को जीवित रखने में काबिल बन गये हैं। बचपन से बसे मेरे मन में हमारे पुशतैनी मकानों पर चमकने वाले लिखाई  को लेकर सवालों का जवाब अपने हाथं से खुद काम करके मिला तो सही। उसके साथ मेरी दिली इच्छा भी पूरी हुई कि मैंने एक नई कला सीखी। शायद अब हमारे मुनस्यारी में लिखाई  की परम्परागत शैली अपनी जगह फिर से ग्रहण कर लेगी।

फोटो: Malika Virdi


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Meet the storyteller

Trilok Singh Rana
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Like all able bodied young men, Trilok Singh Rana grew up dreaming of joining the Army. Then in 2008, he went on his first high altitude trek as a crew member of a Himalayan Ark trek and was mesmerized by the snow scape on Barjigang pass at 15000 feet. And never looked back. From hunting birds with the village boys till he was 14, he is now a respected bird guide of Uttarakhand. He sees himself grow old, exploring and photographing these grand mountains and the wildlife they nurture.

Himalayan Ark
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Himalayan Ark is mountain community owned and run tourism enterprise based in Munsiari, Uttarakhand. They enable and guide deep dives into rural lives and cultures, as well as in natural history and high mountain conservation initiatives and adventures.

2 Comments

  • Shivani

    बहुत ही खुशी हुई आपके प्रयासों के बारे में जान कर। ईश्वर आप सबको स्वस्थ और संपन्न रखें।

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