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स्पिति के लोग आज भी पत्थर खाते हैं

लेखक: छेरिंग नोंरबु

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मेरा नाम छेरिंग नोंरबु है।  मैं ग्राम डैमुल, ज़िला – लाहौल स्पिति, हिमाचल प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक अमची (अमची का मतलब है “सभी जीवों की माँ”) हूँ। मेरा परिवार सैकड़ों वर्षों से वंशानुगत सोवा रिग्पा (उपचारात्मक प्राचीन विज्ञान) पद्धति से उपचार व प्रचार करते आ रहा है ओर इसे संरक्षित कर रहा है।

डैमुल में जड़ी बूटियाँ इकठ्ठा करते हुए। फोटो: छेरिंग नोंरबु

इस पद्धति के पूरे कोर्स अगर आप किसी संस्थान में करते है तो ५ वर्ष लगते हैं। परन्तु मैं बचपन से ही अपने दादा जी एवं पिता जी से भोटी भाषा लिपि के पश्चात सोवा रिग्पा के ज्ञुत झी- चार बुनियादी चिकित्सा ग्रन्थ (Secret Oral Tradition Of The Eight Branches Of The Science Of Healing which is divided into Four Treatises) एवं येंन लक ज्ञेत पी निनपो – अष्टांग ह्रदय (The Essence Of The Eight Branches) को वंशानुगत सिखने के पश्चात मैंने लिखित और मौखिक में परीक्षा दी। उसके बाद पड़ोसी गाँव के वैद्य के उपस्थिती में स्थानीय गाँव के मरीज़ों के अवलोकन हुआ जिसमें पास होने के बाद मुझे आगे अभ्यास करने का मौक़ा मिला। 

रोगी की नब्ज़ जाँच करते हुए। फोटो: छेरिंग नोंरबु

बौद्ध धर्म के अनुसार हर माह के ८ तारीख को मनला (Medicine) व स्वास्थ्य दिवस पर व्रत रखते हैं। उस दिन सभी अमची समस्त जीव जंतुओं के सुखी व रोग मुक्त जीवन एवं जन कल्याण हेतु मन्त्र आचरण करते हैं। उसके बाद मैं और पिता जी घर के मंदिर, छो पेम्मा – रिवाल्वर मण्डी एवं गाँव के खपसा गुफ़ा में सांज्ञे मनला (Medicine Buddha) एवं अन्य देवी देवता की कठोर तपस्या करते हैं। इस तपस्या से हमें Non Visible Force का पता आराम से चलता है फिर हम उसे अपने उपचार करने की शक्ति से दूर करते है। उसके बाद वर्ष २०११ से मैं स्थानीय जनता के स्वास्थ्य समस्या के निवारण हेतु सेवा दे रहा हूँ।

जड़ी बूटियों को पीसते हुए। फोटो: छेरिंग नोंरबु
जड़ी बूटियों का अभ्यास करते हुए। फोटो: छेरिंग नोंरबु

आज पूरा विश्व जैविक कृषि, प्राकृतिक जड़ी बूटी व आयुर्वेद एवं योग को दुबारा से अपना रहा है जिसके कारण फिर से पुराने रीति रिवाज, रहन सहन, खान पान एवं संस्कृति को बढ़ावा मिल रहा है। लेकिन इस आधुनिक युग में स्थानीय अमची को बहुत बड़ी चुनौती आ रही है। इसका कारण है आय का साधन न होने के कारण वह अपना वक़्त न दे पाना और इस मंहगाई के दौर में जड़ी-बूटी (औषधि) को बाज़ार से न खरीद पाना। पिछले कई दशक से स्पिति क्षेत्र में क़रीब २४-२५ अमची हुआ करते थे लेकिन आज के इस युग में ९-१० अमची ही अभ्यास कर रहे हैं।  

डैमुल गाँव। फोटो: स्पीति इकोस्फियर

जिस तरह से इस आधुनिक युग में भी देश विदेश के लोग आयुर्वेदिक व सोवा रिग्पा को प्रोत्साहन दे रहे हैं व अपना रहे हैं यह बहुत अच्छी बात है, परन्तु कुछ चिकित्सा संस्थान व दवा उद्योग पूरे हिमालय में मज़दूर लगाकर जड़ी बूटियाँ काफ़ी ज़्यादा तादात में निकाल रहे हैं जिससे कई प्रजातियाँ आज के तारीख़ में लुप्त हो चुकी हैं। यह बहुत ही निंदनीय है। जो लोग इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं उन्हें इस के महत्व को समझना चाहिए।

स्थानीय जड़ी बूटियों और पौधों का दवाइयों में इस्तेमाल किया जाता है। फोटो: छेरिंग नोंरबु

मेरा आयुष मन्त्रालय से निवेदन है कि आप अमची को जड़ी बूटियाँ हेतु नर्सरियों को बनाने के लिए प्रेरित करें। इससे समय रहते लुप्त हो रहे पौधों को बचाया जा सकता है और तिब्बतियों के साथ साथ भारत देश के हिमालय क्षेत्र में कुछ बचे हुए वंशावली अमची की योग्यताओं पर भी विश्वास करें जिन्होंने इस पद्धति का आज भी संरक्षण करके रखा है और अभी भी अपनी लोगों के बीच सेवा दे रहे हैं। आज भी यहाँ के लोग अमची प्रणाली पर अन्य चिकित्सा प्रणाली से ज्यादा विश्वास करते हैं क्योंकि यह प्रणाली प्राचीन काल से ही यहाँ के लोगों के साथ जुड़ी हुई है और इसी पद्धति से रोगों का निदान होते आ रहा है।

स्पीति वैली। फोटो:स्पीति इकोस्फियर

मैंने अपने जीवन काल में बहुत सारी नई बीमारियाँ देखीं जिसका निदान स्थानीय जड़ी बूटियों से किया। इसके अलावा यहाँ पर कुछ ऐसे सामान्य रोग भी पाए जो हर १० आदमी में पाए जाते हैं। वह है खट्टे पानी (Acidity), जठर (Gastric) व पाचक (Digestion) सम्बन्धी बीमारियाँ जिसके मुख्य कारण आत्याधिक शराब सेवन, प्रायः अधिक खाने, ज़्यादा गर्म मसाले का इस्तेमाल व साथ साथ तली हुई चीज़ें। इन रोगों इलाज के लिए एक विशेष प्रकार का पत्थर जो चमकीला होता है रंग जिसका प्रायः सफ़ेद होता है जिसका नाम चुग जी (Cong Zi- Coloitum) है लगभग स्पिति के हर क्षेत्र में बहुत ज़्यादा मात्रा में पाया जाता है, लेकिन डैमुल नामक गाँव में यह दो क़िस्म के पत्थर मिलते हैं। यह पत्थर यहाँ के पुरुष व महिला रोगी के लिए अलग नामों से (फ़ो चोंग- पुरुषों के लिए व मों चोंग- महिलाओं के लिए) पुकारा जाता है परन्तु दवाई का प्रयोग करते समय opposite Sex के लिए प्रयोग होता है।

चुग जी नामक पत्थर जो रोगों के निवारण के लिए इस्तेमाल किया जाता है। फोटो: छेरिंग नोंरबु

इस पत्थर का चूर्ण बनाकर लोग दो सप्ताह के लिए रोज़ एक चम्मच के एक चौथाई दिन में दो बार खाते हैं। यह खट्टे पानी के लिए इतना प्रभावी साबित होता है कि यहाँ के स्थानीय लोग ही नहीं, अन्य भागों से आए हुए लोग भी चिकित्सा विज्ञान की नवीनतम दवाओं को परे हटाकर इसी को खाना पसन्द करते हैं तथा इसी को खाकर २ सप्ताह में ही आराम प्राप्त करते हैं। मज़े की बात यह है कि इस के दुष्प्रभाव (Side Effects) भी नहीं है। 

पत्थर को पीस कर पाउडर बनाते हुए। फोटो: छेरिंग नोंरबु

इस पत्थर की बहुत विशेषताएँ है इसके साथ अन्य जड़ी बूटियाँ को मिलाकर निम्न मुख्य बीमारियों- Peptic Ulcer, Epigastric burning pain, Gastrointestinal Swelling, Indigestion, Dyspepsia के लिए Powder दवाइयाँ बनाते हैं। उपरोक्त बीमारियों को छोड़ कर यह पत्थर बहुत सारे अन्य दवाइयों में भी इस्तेमाल होता है। यह इतना कारगर साबित होता है कि लोग इसे ख़ुद ही चूर्ण बनाकर खा लेते हैं। इस पत्थर के अलावा भी स्पिति में ऐसे कई पौधे व जड़ी बूटियाँ हैं जिन्हें हम इस युग की संजीवनी जड़ी बूटियाँ कह सकते हैं।

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