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हिमाचली घर की झलक

लेखिका: दिव्या भियार

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आज मैं आपको अपने घर के बारे में बताना चाहती हूँ। मेरा घर लकड़ी का बना हुआ है जो चार मंज़िला है। घर के सबसे ऊपरी मंज़िल में रसोई होती है। दूसरी मंज़िल को बिह और कुछ लोग ज़िली बाहुड़ कहते हैं। तीसरी मंज़िल को फढ़ कहा जाता है तथा चौथी मंज़िल को खुड़ कहा जाता है जहाँ गाएँ रखी जाती हैं।

हिमाचली घर। फोटो: स्टीफन मार्चल
दिव्या के घर का बाहरी हिस्सा। फोटो: दिव्या भियार

रसोई – घर के सबसे ऊपरी मंज़िल पे रसोई होती है। मेरे घर में रसोई में एक तंदूर लगा है जहाँ हम खाना बनाते हैं। तंदूर जलने के लिए लकड़ी घर में रखी होती है। घर में गैस भी है पर मैं गैस पर सिर्फ चाय बनती हूँ। बाकी दाल, चावल, रोटी आग के ऊपर ही बनती हूँ। खाना बनाने का काम माँ ने मुझे सौंपा है। मैं खाना बनाने में खुश रहती हूँ पर मुझे लकड़ी तोड़ने का बहुत गुस्सा लगता था क्योंकि मेरेसे लकड़ी फोड़ी ही नहीं जाती थी। इसलिए लकड़ी मेरी छोटी बहन फोड़ के रखती थी। रसोई को घर की सबसे ऊपरी मंज़िल पे इसलिए रखा जाता है क्योंकि दादी जी कहती थी कि रसोई सबसे पवित्र होती है। वहाँ जूतों के साथ नहीं जाते हैं तथा रसोई में लगातार आग चलने से सिर्फ एक ही कमरा ख़राब होता है। धुआँ छत से बहार निकलता है। अगर रसोई को किसीभी कमरे में रखें तो लकड़ी से निकलने वाला धुआँ सभी कमरों में फ़ैल जाता है। दादी जी कहती थी की रसोई में एक वक़्त आग जलनि ही चाहिए।

रसोई में चूल्हे के ऊपर तंदूर बना हुआ है। फोटो: दिव्या भियार

घर के छत पे जोगणी माता होती है गाँव में सभी के छत पर होती है। इसलिए धूप से अगेठे को जलाया जाता है और फिर जोगणी को चढ़ाया जाता है। धूप जलने से पहले अगेठे को लाल मिट्टी तथा गोबर से शुद्ध किया जाता है।

घर के छत पे जोगणी माता। फोटो: दिव्या भियार


सर्दियों में आग दिनभर चलती रहती है और हम लकड़ियाँ बड़ी बड़ी काट के लाते हैं जिससे धुआँ तंदूर से बाहर निकलता है। धुआँ छत बाहर निकलता है। जिन दिनों मेरा घर बना उस समय तंदूर नहीं होते थे। अगेठा होता था जिसपे खाना बनाया जाता था। समय के साथ साथ फिर तंदूर निकले फिर घर में आग से बचने के लिए तंदूर लगाए गए।

बिह (ज़िली बाहुड़) – घर की दूसरी मंज़िल बिह है। घर में जब कोई कार्यक्रम होता है तो वह बिह में किया जाता है। जैसे कोई देउली मतलब अगर देवी-देवता को लाना है तो उनको बिह में रखते हैं। बिह में हमने लकड़ी के बेड लगाए थे जहाँ पर बहनें सोती थी। फिर मैंने मम्मी जी और बड़ी मम्मी जी ने फटाफट बिह से वो बेड निकाल दिए और बिह को सजाया। मेरे घर में बिह बहुत बड़ी है जिसमें दीवार में अनाज रखने के लिए गठारी मतलब लकड़ी का एक बॉक्स दीवार के साथ टच करके बनाया है।

बिह (ज़िली बाहुड़) जहाँ कार्यक्रम होते हैं और देवी-देवता को रखा जाता है। फोटो: दिव्या भियार

फढ़ – तीसरी मंज़िल को फढ़ बोलते हैं जो सोने के लिए कमरा होता है। मम्मी जी और पापा जी फढ़ में सोते हैं। मुझे फढ़ में नींद नहीं आती है। वहाँ पे इंटरनेट नहीं चलता। मैं फोन चलने के लिए रसोई में ही सोती हूँ। वहाँ नेटवर्क अच्छे से आता है और मुझे फोन देखने के लिए गाली देने वाला भी कोई नहीं होता।

फढ़ सोने के लिए कमरा होता है। फोटो: दिव्या भियार

खुड़ – घर में चौथी मंज़िल खुड़ होता है जहाँ गायें राखी जाती हैं। सुबह बिस्तर से उठते ही गाय को दुहने जाते हैं। बच्छु की सेवा अच्छे से हो इसलिए उनको घर में ही सबसे नीचे की मंज़िल में रखा जाता है।

चौड़ी (चाउडी) – चाउडी दूसरी मंज़िल के साथ ही बाहर को बनाई जाती है जो balcony की तरह होती है। मेरे घर में चारों तरफ चाउडी है। हमने घर में एक तरफ को चाउडी बंद कर दी और जिस तरफ से धुप निकलती है उस तरफ से खुली रखी है। घर में चाउडी में एक कोना हुए बहुत अच्छा लगता है। मैं गर्मी में खाना खाने वहीं निकलती हूँ। मेरी छोटी मम्मी तो वहाँ खाना खाने के लिए बहुत गालियाँ देती है क्योंकि हम वहाँ खाना और पानी फैंकते हैं जिससे वहाँ मक्खियाँ लग जाती हैं। मैं और मेरे बहन-भाई वहाँ देर रात तक गप्पें मारने बैठते हैं।

चाउडी balcony की तरह होती है। फोटो: स्टीफन मार्चल
दिव्या के घर की चाउडी। फोटो: दिव्या भियार

सीढ़ियाँ – चलने के लिए सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। एक सीढ़ी बरामदे से लेकर चौड़ी तक लगाई है और दूसरी सीढ़ी बिह से टाहले (रसोई) तक लगाई है।

सफाई – मुझे सबसे बड़ा काम घर की सफाई करना लगता है। झाडू लगाना, बर्तन धोना यह तो आम बात है। सबसे बड़ा तो जब पूरे घर में लाल मिट्टी और चूना दीवारों पर लगाया जाता है। उसके बाद उनके छींटे अलमारी में गिरना बिह में पूरे घर में गिरना सबसे बड़ा काम है। घर में लकड़ी लगी है। रसोई, बिह, चौड़ी, कमरे सब में नीचे लकड़ी ही लगी है जिसको साफ़ करने के लिए ईंट और रेत से धोया जाता है। तब वह सफ़ेद होता है। रेत-ईंट लगाने के बाद उसे पानी और झाडू से साफ़ किया जाता है। मम्मी जी तो मुझे ईंट लगाने रखती है और खुद पानी भरके उससे दरवाज़े खिड़कियाँ पोंछने का काम करती है। ईंट और रेत के साथ सफाई साल में ४-५ बार की जाती है। पोछा तो हफ्ते में लगते रहते हैं।

गाँव के पानी के मुख्य पाइप लाइन पर काम करती हुई कुछ महिलाएं। फोटो: दिव्या भियार
डबरा जो बर्तनों की सफाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। फोटो: दिव्या भियार

मम्मी जी तो सफाई के मामले में बहुत तेज़ है। मुझे और बहनों को कहती रहती है कि अगर अभी तुम्हे सफाई करने का गुस्सा आता है तो शादी के बाद तुम क्या करोगी? लोग तो तुम्हें आज रात शादी करके ले जाएंगे और दुसरे दिन फिर से घर छोड़ देंगे और ताने मम्मी जी को ही सुनने पड़ेंगे कि आपकी बेटी को कुछ काम नहीं आता है। पहले तो मुझे मम्मी की बातों का गुस्सा आता था। फिर मैं सोचती हूँ कि मम्मी जी हमारे भले के लिये ही सोचती है।

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Meet the storyteller

Divya Bhiyar
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Divya belongs to the Bihar village in the Kullu district of Himachal Pradesh. She is 21 years old and is studying in the final year of B.A. Divya's parents work in the nearby fields. Divya is the eldest among their five daughters. She aspires to become a History teacher. She loves to write stories for her college magazine and would also love to learn Kullu’s traditional clothes weaving.

Himalayan Ecotourism
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Himalayan Ecotourism is a social enterprise offering experiential tours and treks in Tirthan Valley, near the Great Himalayan National Park. They believe in sustainable development by promoting conservation and empowering locals, especially women.

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